प्रेम जो दो दिल, दो इंसान को एक कर दे,
दो शरीर होकर भी एक जान कर दे।
घाव किसी एक को लगे, दूसरा घायल हो जाए,
प्रेम के अगभीर सागर में, यूंही दोनो खो जाए।
एक विश्वास का, सम्मान का डोर बंधता जाए,
मन की उदासी हो या प्रसन्नता, उनसे जुड़ता जाए।
किसी एक के बिछड़ जाने से, दूसरा जी न पाए।
मृत्यु की और खींचता रहे, जीवन को सींचना भूल जाए।
प्रेम के पुष्प सुगंधित इत्र की तरह, जीवन को महकाए,
दोनों एक दूसरे के संग, जीवन के हर युद्ध लड़ते जाए।
बस यूंही।
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