चलो कोई सिप सीखा जाय(अवधी कविता)

गुजर बसर से उप्पर उठी कय चलो कोई सिखा जाय।
हाथेस अपने चलो आज अपन मुकद्दर लिखा जाय।।
बुद्धि संघेंन विवेक मिला उप्पर से स्वस्थ्य देंही दिहीन भगवान।
करई मेहनत बुद्धि लगाई कय मनाई वहय आज धनवान।।
काल्ही बिति गा काल्ही ना आई सब कुछ बस हय आज।
अपन मुकद्दर खुद जो लिखत समझो ऊ हय सरताज।।
सिप बिना कऊनो काम ना होय जग मा सिप बडा महान।
सिप सिखी कय लाखों कमात देखो दुनियम आज इंसान।।
हाथेक लकीरन कय भरोसम ना बैठेव हाथेस करेव कुछ काम।
कामय तुम्हार मुकद्दर हय दुनियम होई जाई नाम।।
सब कुछ संभव हय दुनियम जो तुम धाई लेव ध्यान।
करो मेहनत लक्ष्य पर डाटी कय होई जाई कल्यान।।
भगवान भरोसे बैठ रहिहो जो भूंखन मरि जाई पेट।
खुदई जोति कय बिया ना बोईहो तो बांझ रहि जाई खेत।।
सिप जिकई साथी हय जग मा सुखी ऊकई परिवार।
भाग्य भरोसे बईठे हय जो जीवन उनके हय लाचार।।
चोरी चोर ना कई सकय सिप जाऊ जहां हुंवा साथ।
सिखत सिप पैसा कमात सुख से रहत अउर खात।।
नौकरी किहा नौकर रहेंन चलो अब सिप सिखा जाय।
चलो अपने काम कय बल अपन मुकद्दर लिखा जाय।।

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रचनाकार

Author

  • आनन्द गिरि मायालु

    (कवि, लेखक, पत्रकार, समाजसेवी एवं रेडियो उद्घोषक) शिक्षा : स्नातक पेशा : नौकरी रुचि : लेखन, पत्रकारिता तथा समाजसेवा देश विदेश की दर्जनों पत्र पत्रिका में कविता, लेख तथा कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ, नेपाल टेलीविजन तथा विभिन्न एफएम चैनल से अंतर्वाता तथा कविताए प्रसारित। भारत तथा नेपाल की तमाम साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान तथा पुरुस्कार प्राप्त। पता : करमोहना, वार्ड नंबर 3, जानकी गांवपालिका, बांके (लुम्बिनी प्रदेश) नेपाल।Copyright@आनन्द गिरि मायालु/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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