खुशियाँ

सड़ चुके किचड़ में ही
कमल के फूल निकलती है,
ये खुशी का इजहार न कर,
ये खुशियाँ तकलीफ से निकलती है।

वो दिखते बहुत खुशहाल है
पर अंदर से बहुत टूटे है,
तुमने नहीं जाना उनके दर्द को
की अंतर से कितने रूठे है?

ये बाहर जितनी खुशहाली है,
वो खुशहाली ,खून से सिचती है
ये खुशी का इजहार न कर
ये खुशियां तकलीफ से निकलती है।

मासूमियत हमे काम न देती,
खुद को जिंदगी बनाने में,
अकेला ही रहना पड़ता है,
दुख ,दर्द से भरी विरानो में

यह मुस्कान से हमें ना भरमा,
ये मुस्कान बहुत फीकी दिखती है
ये खुशी का इजहार न कर
ये खुशियां तकलीफ से निकलती है।

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रचनाकार

Author

  • नवेंदु कुमार वर्मा

    जिला गया( बिहार) 824205. Copyright@नवेंदु कुमार वर्मा/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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