एक राह ऐसी भी

घर परिवार समाज एवं अपने विभाग से अपमानित व मूर्ख पागल हरिश्चंद्र का चेला जैसी उपाधि प्राप्त कर चुके इंस्पेक्टर साहब के चेहरे पर आज खुशी की लहर दौड़ पड़ी | ओजस्वी चेहरा, होठों पर मंद मंद मुस्कान, सुडौल शरीर पर ईमानदारी का रूआब देखते ही बनता था| अवसर है पुलिस अधीक्षक के सभागार में होने जा रही मीटिंग का |
मां के द्वारा दी गई संस्कारित शिक्षा एवं उपदेशों ने इंस्पेक्टर साहब के मन में इस प्रकार घर बना लिया था कि गलत राह पर चलना तो दूर गलत सोच भी नहीं सकते थे ,उनके मन में ईमानदारी इतनी प्रबल रूप में घर बना गई थी कि कठिन से कठिन परिस्थितिया भी उन्हे डगमगा न सकी| क्योंकि उनके पास थी इच्छाशक्ति|
मनुष्य के जीवन की सफलता उसके इच्छाशक्ति पर ही निर्भर करती है|
अपनी ईमानदारी जिम्मेदारी एवं नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर इंस्पेक्टर साहब बड़ी ही कठिनाइयों के साथ अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं, जहां आज चारों तरफ बेईमानों का बोलबाला हो वहां एकाध ईमानदार की हैसियत क्या, वह भी पुलिस विभाग में ,जहां सिर्फ चोरों का ही दरबार चलता हो, नीचे से लेकर ऊपर तक सभी के सभी रिश्वत के खेल में सने हुए हो|
अपने कड़क स्वभाव एवं ईमानदारी के प्रति दृढ़ संकल्प लिए इंस्पेक्टर साहब जहां भी जाते पूरा का पूरा पुलिस स्टेशन उनके कड़े निर्देशों से सहम सा जाता था ,| कुछ पुलिसकर्मी जो कायर एवं घूसखोर किस्म के थे उनके ऊपर तो शामत ही आ जाती थी |
आज अपराधी च्छेत्र छोड़कर भाग रहे हैं ,लेकिन कुछ राजनीतिक अपराधी ईमानदार इंस्पेक्टर से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि उन्होंने कभी गलत कार्य नहीं होने दिया, अतः बड़े नेताओं द्वारा इनका ट्रांसफर करा दिया जाता था,उनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसफर होता रहता ,जिससे अपने पूरे सेवाकाल में अपना परिवार साथ नहीं रख सके |पूरा परिवार गांव में ही रहता था वहीं पर बच्चे की पढ़ाई भी हो रही थी | घर के नाम पर वही पैतृक कच्चा मकान जिसका सिर्फ डेकोरेशन रंगाई पुताई तक ही जीवन में करा पाए चल, अचल किसी प्रकार की संपत्ति नहीं खरीदी| जिसके कारण लोग उनकी नौकरी (इंस्पेक्टर पद) पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते थे |
हर तरफ से इन्हें उलाहना मिल रही थी, घर आते तो मिठाई के नाम पर बतासा ही लाते | कभी-कभी तो पत्नी भी खूब खरी-खोटी सुनाती| बगल में शर्मा जी सामान्य सिपाही हैं कितना अच्छा घर बना लिए एक और नई गाड़ी खरीद ली| आपके पास घर है ना गाड़ी, बनते हो पुलिस के बड़का साहेब |
इंस्पेक्टर साहब मुस्कुराते हुए बोल देते थे धैर्य रखो इतना बड़ा घर बनाऊंगा कि लोग देखेंगे ,|ऐसी गाड़ी लाऊंगा कि देखने वालों की भीड़ लग जाएगी| मन मसोसते हुए पत्नी ने भुनभुनाया, पता नहीं एक कब होगा ,देखने से तो ऐसा कभी नहीं लगता |
इंस्पेक्टर साहब ने बड़े प्यार से दोनों बच्चों को अपने पास बुला कर एक-एक बतासा मुंह में डालते हुए पूछते हैं ,मीठा है |उत्तर मिलता है हां | पत्नी सहित पूरे परिवार के साथ बताशा खाते हुए खूब हंसते मजाक करते हैं जिससे पूरे घर की मैं खुशी का माहौल छा जाता है | आज बताशे की मिठास के आगे मिठाई भी लज्जित नजर आती है|
शासन से लेकर प्रशासन तक से उन्हें ईमानदारी की सजा ही मिली |अधिकारियों द्वारा पैसे की मांग करने पर पूरे जिले की पुलिस पैसा इकट्ठा करने में जुट जाती, किंतु एक ये थे कि पैसा जुटा ही नहीं पाते, कहते थे कि पैसा आए तो कैसे ?गलत ढंग से किसी को परेशान करके पैसा इकट्ठा करना उनके स्वभाव में नहीं था ,जब अधिकारी के पास जाते तो खाली हाथ | अन्य सभी इंस्पेक्टर तो पूरा पैसा लेकर आते |अधिकारी द्वारा की गई मांग को पूरा न करने के कारण सबके सामने इनकी बेज्जती की जाती थी, सभी लोग इनके ऊपर हंसते हुए व्यंग बाण चलाते थे ,और कहते थे यह हरिशचंद का चेला है, मूर्ख है ,पागल है जैसे ताने दिए जाते थे ,कई प्रकार की मानसिक ताडना देकर उनका ट्रांसफर दूसरे थाने में कर दिया जाता था |इतना होने के बाद भी जैसे इंस्पेक्टर साहब को कोई परेशानी ही ना हो |वे विचलित नहीं होते, कहते थे जहां भेज दोगे वही चला जाऊंगा ,मेरे लिए तो सब धरती एक समान |अपना बिस्तर बांध लेते |
ताना मारते हुए 1 दिन पत्नी ने कहा, देखते देखते मेरे आधे बाल सफेद हो गए, कब बनेगा आपका आलीशान बंगला, कब आएगी चमचमाती कार |बेटे भी अब जवान हो गए घर पर बहू भी तो लानी है, क्या इसी दो कमरे में गुजारा होगा, बहुत जल्द हो जाएगा धैर्य रखो इंस्पेक्टर साहब ने निश्चित भाव से कहा | अब बतासे की जगह लड्डू लाने लगे थे |
पूरे जिले के अधिकारी आए हुए हैं एक एक इंस्पेक्टर बारी बारी से अपने कार्यों की सराहना बड़ी चतुराई के साथ कर रहे हैं |कुछ तो इंस्पेक्टर की तरफ इशारा करते हुए तंग भी कस रहे हैं| इंस्पेक्टर साहब सभी के द्वारा बताई जा रही बातों को बड़े ध्यान पूर्वक सुन रहे हैं |सबसे बाद में इंस्पेक्टर साहब को भी बोलने का मौका दिया गया इंस्पेक्टर साहब जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए ,सभी लोग व्यंगात्मक ढंग के ठहाके से पूरा सभागार गूंज उठा | पुलिस अधीक्षक द्वारा कड़ी फटकार लगाने पर पूरा सभागार शांत हो सका | इंस्पेक्टर साहब ने अपने जीवन की उपलब्धियों को बताते हुए कहने लगे कि ,मैंने हमेशा ही अपना काम बड़ी ईमानदारी एवं जिम्मेदारी से किया ,जिसके कारण मुझे बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ,मैंने अपने जीवन में परिवार के लिए कोई घर या बंगला चल ,अचल संपत्ति नहीं खरीद सका, किसी भी प्रॉपर्टी का निर्माण नहीं करा सका, फिर भी मुझे गर्व है कि मैंने अपने दोनों बेटों के चरित्र का निर्माण बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया, जिसके कारण आज हमारा बड़ा लड़का इंजीनियर और छोटा डॉक्टर बन गया है| मैं स्वयं उनके लिए घर ना बनवा कर उन दोनों को इस लायक बना दिया कि, वह अब गाड़ी बंगला एवं ऐशओ आराम की सारी चीजें स्वयं खरीद सकते हैं| मैंने अपने पिता होने का सारा फर्ज पूरा किया |
इंस्पेक्टर साहब की बात सुनकर वहां पर उपस्थित सभी इंस्पेक्टर एक दूसरे को देखते हुए कहने लगे कि इतने लोगों में तो बस यही एक बुद्धिमान है बाकी हम सब मूर्ख हैं

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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