…उस दिन से
जी भर जिया नहीं
पानी में हूँ मगर
एक बूंद भी पीया नहीं
कि जब भी चाहा आईने में देखूं अपना अक्श
दर्दों की फेहरिस्त चेहरे को लगी झुलसाने
झुलसा हुआ चेहरा देखने की चीज नहीं|
लिए जा रही है जिंदगी,
अनजाने परिवेश में
कि जिनके बारे में सोचा न था
अफ़सोस-कि चाहना तो था
एक भी …
कि जीवन को
चुनना था-खुद ही, फिर क्यों ?
सोचा,लगता है
एक जीवन चूक गया…|
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