आशिक़ी जब दरमियां बढ़ने लगी
बिन तेरे तन्हाईयां बढ़ने लगी
दिन-ब-दिन बेताबियां बढ़ने लगी
ज़िक्र तेरा महफिलों में जब हुआ
शे’र में गहराईयां बढ़ने लगी
रोज़ बातें कर रहें थे फ़ोन पर
आज़ क्यों ख़ामोशियां बढ़ने लगी
इश्क़ में पागल हुआ सागर सनम
उसकी भी नादानियां बढ़ने लगी
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