आध्यात्मिकता और आधुनिकता की संगम भारतीय नारी”

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
और
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।
मनु की मनुस्मृति (तृतीय अध्याय) में और जयशंकर प्रसाद की कामायनी में उपरोक्त पंक्तियां आदरणीय भारतीय नारी की प्रतिष्ठा, गरिमा, महिमा और महत्त्व का सशक्त हस्ताक्षर है। महिला केवल परिवार की रीढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की संरक्षक है। किसी भी सभ्य समाज की पहचान महिलाओं के प्रति उसके दृष्टिकोण से होती है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और समाज “नारी तू नारायणी है” की भावना से ओत-प्रोत एवं सदैव प्रेरित रहा है। हजारों वर्ष पहले हमारी वैदिक सभ्यता आज से कहीं उत्कृष्ट सोच वाली थी। शुरू से ही महिलाओं को कई अधिकार प्राप्त थे। महिलाएं वेद पढ़ती भी थीं और पढ़ाती भी थीं। वेदों में 404 ऋषियों का उल्लेख मिलता है जिनमें से 30 ऋषि महिलाएं थीं। कोई भी धार्मिक कार्य उनके बिना पूर्ण नहीं माना जाता था। वे युद्ध-कला तथा प्रशासनिक कार्यों में भी पारंगत थीं। परन्तु जैसे-जैसे हमने अपनी संस्कृति को भूलना शुरू किया, उसका पतन होने लगा और इसका दुषप्रभाव महिलाओं पर भी पड़ा और उनकी स्थिति और खराब होती गई। मनुस्मृति में लिखा है कि
यत्र जामयः शोचन्ति तत् कुलम् आशु विनश्यति,
यत्र तु एताः न शोचन्ति तत् हि सर्वदा वर्धते । ३:५७
जिस कुल में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं, वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वह कुल सदैव फलता फूलता और समृद्ध रहता है। भारत की प्राचीन सभ्यता हड़प्पा सभ्यता मातृ सत्तात्मक थी अर्थात नारियों का बोलबाला था।

प्रजनार्थं महाभागाः पूजार्हा गृहदीप्तयः ।
स्त्रियः श्रियश्च गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन ॥
स्त्रियां सन्तान को उत्पन्न करके वंश को आगे बढ़ाने वाली हैं , स्वयं सौभाग्यशाली हैं और परिवार का भाग्योदय करने वाली हैं , वे पूजा अर्थात् सम्मान की अधिकारिणी हैं , प्रसन्नता और सुख से घर को प्रकाशित या प्रसन्न करने वाली हैं , यों समझिये कि घरों में स्त्रियों और लक्ष्मी तथा शोभा में कोई विशेष अन्तर नहीं है अर्थात् स्त्रियां घर की लक्ष्मी और शोभा हैं।
नारी पूजनीय है इसमें कोई शंका ही नहीं है इसलिए श्लोक का क्या अर्थ है हमें जानने की जरूरत ही नहीं है हम अपनी चेतना से समझ सकते हैं इस बात को

प्राचीन काल से ही महिलाएँ भारत की संस्कृति और समाज का अभिन्न अंग रही हैं। महिलाएं समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पूरे इतिहास में, उन्हें दबाया गया, हाशिए पर रखा गया और यहां तक ​​कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया। हालांकि, यह महिलाएं ही हैं जिन्होंने दुनिया की स्थिरता, प्रगति और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित किया है। वे अपनी शक्ति, दृढ़ संकल्प और विश्वास के कारण दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाती हैं, चाहे वे गृहिणी हों, इंजीनियर हों, शिक्षक हों, आदि। हालाँकि, भारत में महिलाओं की स्थिति कई वर्षों से बहस और चिंता का विषय रही है। हाल के वर्षों में हुई प्रगति के बावजूद, आज भी भारत में महिलाओं के सामने कई चुनौतियाँ हैं। किसी भी राष्ट्र की प्रगति में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबरी का दर्जा दिए बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। अपना प्राचीन गौरव हासिल करना है तो हमें राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। रथ में एक पहिया आगे और एक पहिया पीछे हो या एक पहिया छोटा और एक पहिया बड़ा हो तो उस रथ के गतिशील होने की कल्पना नहीं की जा सकती। समाज में यही भूमिका महिला और पुरुष की होती है। यही हमारी परंपरा है। इस संबंध में स्वामी विवेकानंद के विचार उल्लेखनीय है। उनके एक विदेश प्रवास के दौरान जब उनसे पूछा गया कि महिलाओं के लिए उनका क्या संदेश है तो उन्होंने स्पष्ट कहा था कि महिलाओं को संदेश देने की हैसियत मेरी नहीं है। वो चित्र रूपा है, जगत् जननी है। वह अपना रास्ता खुद जानती है।

भारत वर्ष एक सम्पन्न परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश है, जहां महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। ग्रामीण परिदृश्य में महिलाओं की बड़ी आबादी है। दुर्भाग्यवंश विदेशी शासनकाल में समाज में अनेक कुरीतियां व विकृृतियां पैदा हुई, जिससे महिलाओं को उत्पीड़न हुआ। आजादी के बाद महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा, लेकिन उनके सशक्तिकरण की गति दशकों तक धीमी रही। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हे आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है। विशेषकर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों, बैंकिंग सेवाओं और डिजिटलीकरण की सहायता से महिलाओं के सामाजिक और वित्तीय सशक्तिकरण की शुरुआत की जा सकती है। भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं। अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। गार्गी, अपाला, घोषा, मैत्रेयी, माता जीजाबाई, पद्मावती, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, कित्तुर की रानी चेनम्मा, से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले, अहिल्याबाई होलकर, अन्ना चांडी, लक्ष्मी सहगल, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, विजयालक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, मीरा कुमार, सुषमा स्वराज, कल्पना चावला, कमला सोहनी, आसिमा चटर्जी, सुचेता कृपलानी, रीता फारिया, नीरजा भनोट, बछेंद्री पाल, ताशी और नैन्सी मलिक, आनंदीबाई जोशी, कादम्बिनी गांगुली, आशापूर्णा देवी, अरूंधति रॉय, आरती साहा, सुनिता विलियम्स, चंदा कोचर, सुनिता नारायण, मेधा पाटकर, श्रीमती निर्मला सीतारमण आदि महिलाएं आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है। महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए हैं। आने वाले दिनों में पृथ्वी को मानवता के लिए स्वर्ग समान जगह बनाने के लिए भारत सतत विकास लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ चला है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण करना सतत विकास लक्ष्यों में एक प्रमुखता है। वर्तमान में प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, समावेशी आर्थिक और सामाजिक विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है। महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं। प्रसिद्ध अमेरिकी धार्मिक नेता ब्रिघम यंग ने ठीक ही कहा है कि जब आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं, तो आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं। जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं।

भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है। आनंदीबाई गोपालराव जोशी (1865-1887) पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में दो साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक रही है। सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह किया। बॉक्सर एमसी मैरी कॉम एक जाना-पहचाना नाम है। बैडमिंटन के क्षेत्र में साइना नेहवाल और क्रिकेट में मिताली राज, स्मृति मंधाना ने खूब नाम कमाया है। पीटी उषा, किरण बेदी को कौन भूल सकता है। हाल के वर्षों में, हमने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का प्रबंधन करते हुए भी देखा है – अरुंधति भट्टाचार्य, एसबीआई की पहली महिला अध्यक्ष, अलका मित्तल, ओएनजीसी की पहली महिला सीएमडी, सोमा मंडल, सेल अध्यक्ष, कुछ ओर नामचीन महिलाएं हैं, जिन्होनें विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। कोविड-19 के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में महिलाओं डाक्टरों, नर्सो, आशा वर्करों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व समाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की प्रवाह न करते हुए मरीजों को सेवाएं दी है। कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। भारत बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी शानदार भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। महिमा दतला, एमडी, बायोलॉजिकल ई, ने 12-18 वर्ष की आयु के लोगों को दी जाने वाली कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया। निस्संदेह, महिलाएं और लड़कियां समाज में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव की अग्रदूत हैं। छठी आर्थिक गणना के अनुसार, हमारे पास देश में 8.05 मिलियन महिला उद्यमी हैं। शॉपक्लूज, घर और रसोई, दैनिक उपयोगिता वस्तुओं की मार्केटिंग के लिए 2011 में राधिका आॅनलाई स्टार्ट -अप शुरू किया गया। यह यूनिकॉर्न क्लब में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला उद्यमी थीं। राजोशी घोष के हसुरा, स्मिता देवराह के लीड स्कूल, दिव्या गोकुलनाथ के बायजू और राधिका घई के ’शॉपक्लूज’ अन्य यूनिकॉर्न हैं, जो महिला स्टार्टअप की क्षमता के बारे में बहुत कुछ बयां करते है। प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए स्टैंड-अप इंडिया, और स्टार्ट-अप सम्बन्धि कई योजनाएं शुरू की हैं। अब एक महिला उद्यमिता मंच पोर्टल का गठन करना एक प्रमुख पहल है, जो नीति आयोग की एक प्रमुख पहल है। यह अपनी तरह का पहला एकीकृत पोर्टल है जो विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि की महिलाओं को एक पटल देता है और उन्हें कई प्रकार के संसाधनों, की सुविधा प्रदान करता है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से शुरू से ही उद्यमिता के बीज बोने का सार्थक प्रयास किया जा चुका है। हाल ही में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय महेंद्रगढ़ में आयोजित दीक्षांत समारोह में 24 छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। जिनमें से 16 लड़कियां थीं। यह सिर्फ एक विश्वविद्यालय की बात नहीं है। वे लगभग हर संस्थान में लड़कों से कहीं बेहतर कर रही हैं। उनमें उत्कृष्टता प्राप्त करने की तीव्र इच्छा और दृढ़ता है।‘‘ स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिलाएं न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की मजबुती में को भी योगदान दे रही है। महिलाओं के पराक्रम को समझने की जरूरत है, जो हमें महिमा की अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी। आइए हम उन्हें आगे बढ़ने और फलने-फूलने में मदद करें। महिलाओं के सर्वांगीण सशक्तिकरण के लिए ’अमृत काल’ इन्हें समर्पित कर दें। अरुणिमा सिन्हा जैसी महिलाओं के आत्मविश्वास की मिसाल दी जाती है, जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर अपने एक पैर से चढ़कर भारत का झंडा लहराया और देश का गौरव बढ़ाया है। भारत के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने वाले चंद्रयान-3 ने अपनी 40 दिन की लंबी यात्रा पूरी की और बुधवार, 24 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा। इस मून मिशन को सफल बनाने में इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (ISRO) के हर बड़े कीर्तिमान के साथ कई भारतीय महिलाओं का भी योगदान रहा। आज महिलाएं अपनी लगन और मेहनत से जीवन के हर क्षेत्र में शिखर छू रही हैं। विज्ञान का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। राकेट वुमन डॉ. रीतु करिधाल, अनुराधा टी.के., एन.वलारमथी, मंगला मणि, मुथैया वनिता, मीनल रोहित, मौमिता दत्ता, नंदिनी हरिनाथ, डॉ. वी. आर. ललितांबिका, एन. वलारमथी, महि कल्पना कलाहस्थी, निगार शाजी, माधवी ठाकरे, अतुल्य देवी, रेवती हरिकृष्णन, उषा के और कल्पना…

वर्तमान भारतीय समाज में महिलाओं का योगदान अतुलनीय और गहरा है। राजनीति से लेकर शिक्षा तक, व्यवसाय से लेकर सामाजिक सेवाओं तक, कला और संस्कृति से लेकर खेल तक, एयरोस्पेस से लेकर पत्रकारिता और मीडिया तक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य तक, मनोरंजन से लेकर परोपकार तक, आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व, उद्यमिता, सामाजिक सक्रियता और पर्यावरण संरक्षण तक, महिलाएं हर क्षेत्र में प्रभाव डाल रही हैं। उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प उनकी उल्लेखनीय ताकत और लचीलेपन का प्रमाण है। महिलाएं किसी से कम नहीं हैं, ये बात उन्होंने बार-बार साबित की है। वे हर क्षेत्र में अपने साहस, आत्मविश्वास और विवेक से लगातार आगे बढ़ रही हैं। अपनी सूझबूझ से लगातार दुनिया को चकित कर रही हैं। चाहे वे राजनीति के क्षेत्र में हों, साहित्य या फिर सैन्य बलों में, उन्होंने हर जगह अपना लोहा मनवाया है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-यह दिवस दुनिया भर में महिलाओं के योगदान को मान्यता देने के लिए हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। 2024 की थीम थी- “महिलाओं में निवेश करें: प्रगति में तेज़ी लाएँ।”

~ मनु (मनुस्मृति अध्याय-3, श्लोक 56)

~जयशंकर प्रसाद (लज्जा – भाग २ | कामायनी)

~Prasad, Shashi Prabha. Ritikalin Bhartiya Samaj (Hardcover). Rajkamal Prakashan Pvt., Limited. पृ॰ 242. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788180311680.

~Sharma, Harivansh Rai (2001). Sāhityika subhāshita kośa(Hardcover) (Hindi में). Rājapāla. पृ॰ 360. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170281610.

~कुमार, डॉ. सुरेंद्र. विशुद्ध मनुस्मृति(Original Pdf)(Hindi और Sanskrit में) (8th संस्करण). ४२७ , गली मन्दिर वाली , नया बांस , दिल्ली – ११०००६: आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट. पृ॰ 489. अभिगमन तिथि 2021-05-28

प्रोफेसर डॉ. आर.पी. यादव, डॉ निशा वर्मा, डॉ. वंदना राठौड़, अवतार दीक्षित, भारतीय समाज एवं महिलाओं की स्थिति, Hindi ; Neel Kamal Prakashan Delhi 110032; 1 January 2021 ; ISBN-10. 8195278647 ; ISBN-13. 978-8195278640.

श्री बंडारू दत्तात्रेय, माननीय राज्यपाल, हरियाणा, नव भारत के निर्माण में महिलाओं की बड़ी भूमिका, हिंदी, राज भवन, हरियाणा-2022

भारतीय इतिहास में महिलायें | Bharatiya ithias meim mahilaen – , By – Khurana & Chauhan, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, ISBN Code – 978-81-89770-84-6

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रचनाकार

Author

  • डॉ प्रदीप कुमार सिंह

    असिस्टेंट प्रोफेसर-प्राचीन इतिहास.मऊ-उत्तर प्रदेश. Copyright@डॉ प्रदीप कुमार सिंह/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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