हम मजदूर हैं साहब
श्रम से न कभी घबराते है ।
खून पसीना दोनो मिल जाते,
तब अपने घर चल पाते है ।।
सर्दी, गर्मी या हो बारिश,
हम सबको सहते रहते है ।
हम मेहनत के आराधक है,
श्रम की साधना करते है ।।
बोलो ख्वाब कैसे हम देखे
कभी चैन से नहीं सो पाते हैं ।
पेट की आग बहुत बुरी है,
इसमें हम खुद को जलाते हैं ।।
भूख किसे कहते हैं हम जाने,
कितनी रातें भूखे ही बिताते हैं ।
फिर न कोई शिकवा ईश्वर से,
ये नसीब की बात बताते है ।।
मत पूछो क्या बिताती है,
जब बच्चे उम्मीद लगाते है ।
खिलौने के ख्वाब तो उनके,
स्वप्न बन कर रह जाते हैं ।।
दिल के कितने टुकड़े होते,
हम ये भी कह ना पाते है ।
जब काम नही मिलता है,
खाली हाथ घर आते हैं ।।
मेहनत करने वाले आखिर,
क्यूं हर मोड़ पे ठोकर खाते हैं
वो झोपड़ी में रहते है,
जो भवनों को नित्य बनाते हैं ।।
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