जब तक स्त्री सुनती है, चुप रहती है,
घर के सारे काम करती है,
हाँ में हाँ मिलाती है, बिना सही गलत समझे,
तब तक हि लोग उसे कुलिन, समझदार, संस्कारी,
अच्छा होने का पदक देते हैं।
एक बार जो उसने गलत के खिलाफ आवाज़ उठाई,
अपने हक के लिए कुछ कहा,
लोगों को सारी बुराइयां उसी स्त्री मे नज़र आ जाती है।
अपने हक के लिए जो आवाज़ ना उठाए,
वो जीते जी हर पल मरता है।
अच्छा है, बुरा हो जाना।। सहने से तो बेहतर है।।
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