शेष सुता लंकेश बहू घननाद प्रिया लंका युवरानी।
सती सुलोचनि चारों युग में अमर रहेगी तेरी कहानी।।
साज कर चतुरंगिनी इन्द्रदमन जब चलने लगा,
मान जाओ युद्ध रोको प्रिया मन डरने लगा।
राम ने साम्राज्य छोड़ा बात पर अवधेश की,
फिर बताओ क्यूं न जाऊं आन पर लंकेश की।
आज युद्ध निर्णायक होगा बात लो मेरी मानी।।
सती सुलोचनि०
राम लक्ष्मण से कहे तुम जीतोगे विश्वास है,
पर न भूलो महापतिब्रता भी उसके पास है।
शीश धरती पर न गिरने पाये इस पर ध्यान रखना,
प्रिय अनुज सौमित्र रघुकुल का सदा सम्मान रखना।
विजयी हो!जाओ महाब्रत राक्षस कुल की हानी।।
सती सुलोचनि ०।।
छिड़ गया रण धड़ धड़ा धड़ शीश क्षत् गिरने लगे,
दो महांसतियों के सत प्राणान्त तक लड़ने लगे।
पाप का पलड़ा झुकाया लंका के सम्मान को,
सती का भी सत बचा न पाया पति के प्राण को।
उर्मिलपति ने काट ही डाला मेघनाद सिर तानी।।
सती सुलोचनि०।।
कटा शीश लेकर हनुमत आये प्रभु के पास तब,
उधर भुजा ने लिख दिया है युद्ध का इतिहास सब।
अब भी क्या कुछ शेष है लंकेश खोने के लिए,
शीश पति का चाहिए अब सती होने के लिए।
राम प्रभु मर्यादा रक्षक देंगे शीश स्वाभिमानी।।
सती सुलोचनि०।
अश्रु मोती वर्षा करती रामा दल में आ गयी,
मर्यादा पुरुषोत्तम की आंखे भी डबडबा गयी।
तुमने मेरी पूजा की थी पर नियति टलती नहीं,
पाप ज्योति की शिखा बहु देर तक जलती नही।
लो यह अपने पति का मस्तक मुझमे ही प्रस्थानी।।
सती सुलोचनि०।।