जिसने न शीश झुकाया था ।
जिनकी तलवारों के शोर से,
ये धरती_अम्बर थर्राया था ।।
वो धरती पुत्र महाराणा प्रताप,
जिसने अकबर को ललकारा था ।
जिसको जान से बढ़ कर के,
स्वाभिमान वतन का प्यारा था ।।
रक्त से सोभित हल्दीघाटी थी,
जहां मृत्यु ने तांडव मचाया था ।
चेतक पर सवार भाला लेकर,
राणा ने ललकार लगाया था ।।
आंखों में धधक रहे अंगारे,
कोई सम्मुख न टिक पाया था ।
फिर सुमिर भवानी जगदम्बा,
रण में कोहराम मचाया था ।।
जिधर भी चेतक मुड़ जाता था,
तो लाशों का ढेर लग जाता था ।
कब निकले तन से प्राण शत्रु,
ये भी तो जान न पाता था ।।
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