भंग की तरंग में उमंग इठलाय रही
सा रा रा रा सा रा रा रा शोर चहुँओर है
जाति सम्प्रदाय का कतहूँ भेद भाव नहीं
जित देखो तित बलजोर झकझोर है
गाल पै गुलाल सोहे हरा पीला लाल अरु
रंग-रस गोरी अंग- अंग सराबोर है
ओढ़नी को दाँत से दबाय अकुलाय गोरी
ढूँढ़े कित छुपा वो ‘असीम’ चितचोर है
कौन सी चूक भई अबकी के फागुन में
दिन तो कटत नहीं, रात ज्यूँ पहाड़ है
गोपियन छिप गयीं, ग्वाल-बाल रूठि गयो
गली है बिरज की या नगर उजाड़ है
राधिका के हाथ में अबीर औ गुलाल भरा
श्याम रंग भरी पिचकारी लिए ठाड़ है
होरी के बहाने आज गोरी को परस करूँ
सोचे हैं कन्हाई किन्तु बीच में किवाड़ है
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