देखो तो कैसे ….
इठलाता हुआ सा जा रहा है –बसंत,
और –आ रहा है मदमस्त हवाओं संग
फागुन ….धीरे धीरे ,
जहाँ पेड़ों पर फूट रही हैं ,कोपलें नवपल्ल्व की,
वहीं ,आमों के पेड़ों पर लद गई है मंजरियाँ,
जिसकी भीनी भीनी –खुशबु फैल रही हैं ,
फिजाओं में –धीरे धीरे….,
जहाँ,अमलतास और गुलमोहर के फूल पलाश के संग मिलकर,
फ़िजाँ में अप्रतिम छटा बिखेर रहे हैं,
और अंबर भी सजा हुआ है इन सतरंगी बहारों से,
तो वहीं, वसुधा भी सज गई है सतरंगी चादरों से,
जहाँ,बुलबुल और कोयल भी करती हैं, स्वागत मधुर गीत गा कर फागुनी बयार का,
वहीं मन में है फूट रही ये प्यार की कोपलें,
इस मदमस्त फागुन की बयार में और,
ले के आया है रंगों के उत्तस्व को,
अप्रतिम रंगोत्स्व के रूप मे ….||
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