घिर के सावन में बदरिया प्रेम जल बरसा रही
भीग जाए सबका तन मन भाव ये दर्शा रही
जब चमकती है ये बिजली गर्जना नभ हो रही
प्रकृति के संग में रहो संदेश हमको दे रही
डाल पर झूले पड़े चहुओर गुंजन गीत की
फैली हरियाली जगत में धरती नभ के प्रीति की
प्रेम में तपता गगन और प्रेम में तपती धरा है
प्रेम बनकरके ये आंसू आसमां से जब झरा है
क्या पता क्यों दिल धड़कता है मेरा किस प्रीत में
लालसा किसकी जगी है दिल में मेरे प्रीति की
प्रीति जो दिल से निभाए प्रीति उससे तुम करो
हार जाने की खुशी हो लालसा ना जीत की
भाव में ही डूब जाएं ऐसी उनकी प्रीति हो
प्रेम भर जाए दिलों में ये जगत की रीति हो
प्रेम पाकर आसमा का तृप्त ये धरती हुई
प्रेम में ही तृप्ति है संदेश हमको दे रही
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