काव्य संग्रह :आठवां समंदर
द्वारा :सीमा शर्मा “सृजिता”
प्रकाशन : प्रतिविम्ब (नोशन प्रेस)
क्यूँ पढ़ें:-
भाव प्रधान मुख्यतः प्रेम भाव में डूबी हुयी सुन्दर रचनाएँ जो अपनी सम्पूर्णता में एक नारी के मन में प्रेम से सम्बद्ध हर भाव यथा समर्पण , त्याग , इंतज़ार को प्रमुखता से प्रस्तुत कर रही है। इस भाव से इतर भी अन्य रचनाएँ भी हैं जो विचारों की सुन्दर पठनीय अभिव्यक्ति है ।
शीर्षक :-
यूं तो कवि को अपनी प्रत्येक रचना सामान रूप से प्रिय होती है किंतु फिर भी कोई ना कोई एक रचना ऐसी होती है जो उस के दिल के बेहद करीब होती है , और ऐसी विशिष्ट कविता को अक्सर कविता संग्रह में सबसे प्रमुख स्थान प्रदान करते हुए कविता का शीर्षक ही पुस्तक का शीर्षक बनता है। प्रस्तुत कविता संग्रह “आठवां समंदर” भी इसी अव धारणा का एक उदाहरण है। संग्रह में कविता आठवां समंदर सपनों की उड़ान लिए हुए बेहद सुंदर कविता है वैसे भी यह पूर्णतः कवि की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह अपने कविता संग्रह को क्या नाम दें, उसकी तार्किकता अथवा उसकी उपयोगिता पर विचार करना शायद समीक्षा की दृष्टि से अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करना होगा । सम्माननीय कवियत्री की भावनाओ का सम्मान करते हुए एवं संग्रह में समान नाम से कविता का भी होना, शीर्षक की उपयुक्तता को तार्किक रूप से प्रमाणित एवं स्थापित करने हेतु पर्याप्त है।
रचनाकार:-
सीमा शर्मा “सृजिता” वर्तमान युवा रचनाकारों में प्रमुखता से लिया जाने वाला वह नाम है जिसने अपने पहले ही काव्य संग्रह “योषिता” के द्वारा काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। सीमा जी का यह दूसरा प्रकाशित काव्य संग्रह है, हालाँकि उनके साझा संग्रह एवं विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में उनके लेख, कहानियां एवं कवितायेँ इत्यादि ससम्मान प्रकाशित होते रहते हैं।
उनके प्रथम काव्य संग्रह “योषिता” नें साहित्य मनीषियों का ध्यान आकृष्ट किया था ,उक्त श्रेष्ठ रचना के पश्चात उनकी प्रतिभा को काफी सराहा भी गया था एवं प्रबुद्ध पाठक वर्ग द्वारा उनसे श्रेष्ट रचनाओं की अपेक्षा और भी बढ़ गयी थी।
अपने नवीनतम कविता संग्रह “आठवां समंदर” द्वारा उन्होंने, पाठकों द्वारा उन की प्रतिभा में व्यक्त किये विशवास को सम्पूर्ण मान दिया है एवं उन की अपेक्षाओं को पूर्ण करते हुए तथा उनपर व्यक्त विश्वास का सम्मान करते हुए एक बेमिसाल कृति प्रस्तुत की ।
कविता: भाव एवं मूल तत्व :-
भाव प्रधान , मर्म स्पर्शी रचनाओं का संग्रह है, बेहद गहराई लिए हुए कल्पनाओं में, सुन्दर भावों को, सुन्दर सपनों को संजोया हुआ है, जिन्हें कविता कहने से अधिक उचित एवं उपयुक्त, उनके मन के भाव की अभिव्यक्ति कहना होगा , सुंदर शब्द अत्यंत प्रेम से मात्र भावों को स्पष्टतः दर्शाने हेतु बेहद संजीदगी एवं ख़ूबसूरती से गूंथे गए हैं। अधिकांश कविताओं का मूल भाव ही प्रेम है एवं सम्पूर्ण परिदृश्य प्रेममय। वे स्वयं ही कहती हैं कि :-
हम कण कण में देखते हैं प्रेम
और प्रेम में परमेश्वर
उसे प्रिय हैं प्रेम लिखने वाले लोग
बाँटती हूँ सबको प्रेम
और लिखती हूँ प्रेम
शैली :-
यह पुस्तक नारी मन के भावों को , उसके मन में प्रेम को प्रदत्त सर्वोत्कृष्ट भाव , उसके अंदर छुपी हुयी प्रेम पिपासा और मन में प्रेम को जी लेने की आकांक्षा को शब्द देती है। बेहद सूक्ष्मता से गहन विचारण के पश्चात विचारों को शब्द दिए गए है जो चुनिन्दा तो है ही साथ ही सटीक एवं सरल हो कर सीधे ही दिल में उतरते है, और कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। तुकबंदी एवं क्लिष्ट शब्दों के अनावश्यक प्रयोग से बचते हुए सरल भाषा में अपनी बात कह गयीं हैं। पुस्तक की हर कविता अपने आप में एक सम्पूर्ण विचार है।
प्रत्येक कविता एक भिन्न रूप, भिन्न विचार और विषय लिए है तथा हर शब्द को गहनता से सम्पूर्ण गंभीरता के संग न केवल पढ़ने हेतु अपितु उस पर समग्र ध्यान केंद्रित कर उसकी गूढ़ता तक पहुचने को बाध्य करती है । यह विशेष तौर पर नारी केंद्रित कविताओं का संग्रह है जिसमें उसकी अपने प्यार के लिए चाहत, उसकी तड़प उसका इन्त्ज़ार उसकी फ़िक्र आदि बहुत ख़ूबसूरती से उभर कर आई हैं ।
प्रस्तुत काव्य संग्रह से :-
“तपस्या:”
आदि से अंत तक प्रेम व प्रेमी के इंतज़ार को एक तपस्या निरुपित करते हुए कहती हैं कि :
प्रेमी तपस्या करते हैं आत्मा से मिलन को
प्रेमियों का परमात्मा बसता है
एक दूजे की आत्मा में
कल्पना लोक में उनका विचरण यूँ ही नहीं है अर्थात प्रत्येक कविता अपने में गहन चिंतन संजोये है ,कविता “हैरान क्यों हो”की ये पंक्तियाँ देखें कि :
नदी सागर में नहीं सागर गिर रहा है नदी में
पर्वत पिघल रहे हैं हवा से
अग्नि बुझ रही है तेल से भी
हैरान क्यों हो
प्रेमियों की दुनियां में सब होता है।
वहीं प्रिय की स्मृतियों में कविता “आँखों की आकाशगंगा” में कहे ये शब्द की:
उसकी स्मृतियों को उकेरती कोरे कागजों पर,
और रख लेती अपनी धड़कनों के बेहद करीब,
महसूस होता की जी रही हूँ फिर से ।।
देखती सूरज के चमचमाते टुकड़े
में याद करती आंसू तो गिरा आयी थी
उस आठवें समंदर में / जो अदृश्य है ज़माने के लिए
वो पी लेता है सभी अनबहे आंसू / जिसे देख पाते हैं बस प्रेमी।।
वहीं प्रेम न मिल पाने को, प्रेमी से विछोह या विलगता का होना किसी श्राप की भांति देखा है एवं विश्वास है की तब जब श्राप समाप्त होगा उनका मिलन होगा । प्रेम की अभिलाषा लिए हुए अतृप्त प्रेम भावना को “श्रापित प्रेमी” में व्यक्त उनके भावों को उन्हीं के शब्दों में देखें:
हम श्रापित प्रेमी थे/ मिलन रेखा उखाड़ ली गयी थी
हमारी हथेलियों से /तड़प-तड़प कर मरना / हमारी नियति थी
मगर एक दिन आएगा/ जब भभूत में लिप्त कोई सच्चा योगी
भरेगा अपनी मुट्ठी में गंगा जल / पढ़ेगा कुछ मन्त्र मन ही मन
देगा हमें सदा संग रहो का आशीर्वाद / मैं उसी दिन के इंतज़ार में हूँ।
बेहद मार्मिकता से भविष्य में प्रिय से मिलन के सपने के पूरे होने की आस लिए हुए है रचना “उदास बैठी हैं गिलहरियाँ”। सकारात्मक रहते हुए कल्पनाओं में ही खूबसूरत अंत देखें की:
मै जानती हूँ उस दिन नाच उठेंगी ये उदास गिलहरियाँ
और जमाना जान जायेगा प्रेमियों की अजब दुनिया में
होता है आठवा सागर, आठवां रंग और आठवां स्वर भी।
आठवां समंदर:
इस कविता संग्रह की शीर्षक कविता है जो की पूर्णतः कवि ह्रदय की कल्पना एवं संभवतः सृष्टि के अंत तक भी प्रिय मिलन के भाव संजोये हुए है।
प्रेम को समर्पित एक अन्य कविता “चरणामृत” में प्रेम भाव को किस सुंदरता से प्रदर्शित करती हैं निम्न पंक्तियां :
प्रेम में लिखी गयी कविताएं जन्म लेती हैं प्रेमियों की आत्मा से
पीकर आती है अमृत / आत्मा अदृश्य है
आत्मा से उद्धृत कविताएं भी अदृश्य होती है/जिन्हें महसूस करते हैं बस प्रेमी
प्रेम पर, प्यार, मोहब्बत पर बहुत सारी कविताएं इस कविता संग्रह में कही गई है, किंतु कुछ कविताएं जैसे”ध्यान ,प्रेम बचा लेगा, प्रेमियों के ह्रदय में, बदल दो न लकीरें, पर्यायवाची, और ठप्पा” कुछ ऐसी कवितायेँ हैं जो प्रभावित करती हैं ।
कवियत्री ने प्रेम की विशालता और प्रेमी को किस रूप में देखा है देखें “इन्द्र धनुष में नौ नही होते है अठारह रंग” कविता की ये सुंदर पंक्तियां :
कि मेरे मन में भी है एक चेहरा / जिस पर बरसती है मेरी मोहब्बत
मैं उसे प्यार से आसमान कहती हूं/ जहां जहां जाती हूं साथ-साथ चलता है
वही भूली बिसरी यादों को पुरानी स्मृतियों को भूल पाना इतना आसान नहीं होता यादें बार-बार किसी न किसी रूप में सामने आती रहती हैं यादें अपना चेहरा हर बार बदल कर हमें कभी परेशान तो कभी खुशी के कुछ लम्हे दे जाती है स्मृतियों की बात को सुंदरता से बताती है कविता “स्मृतियां”, बहुत ही सच कहा है स्मृतियों से हम भाग नहीं सकते बस भाग जाने का स्वांग करते रहते हैं
अपने प्रेम को सृष्टि से भी ऊपर मानते हुए, कहना चाहती हैं की उन्होंने प्रभु को मनाया है सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अपने प्यार को पाना चाहती थी कविता “ध्यान” की इन पंक्तियों को देखिए जहां वे लिखती है:
मुझे सृष्टि नहीं बस मांगना था तुम्हें/ तुम तो जानते हो
तुम्हारे प्रेम में वार सकती हूं मैं सैकड़ों सृष्टि
मैं सदियों से प्रतीक्षा में खड़ी हूं उनके दर पर
उनके जागते ही सबसे पहले मैं मांग लूंगी तुमको
तब तक मैं भी जा रही हूं ध्यान में/ तुम प्रतीक्षा करना
कविता “प्रेम नदी” के भाव देखिए जहां वे कहती हैं कि:
हम सभी के हृदय में एक नदी है प्रेम से लबालब
इस नदी का मुहाना / हमारी आंखें हैं
इस नदी में पानी नहीं बहते हैं रंग / जब भी मिलो किसी प्रेम से रूठे व्यक्ति से / उस पर छिड़क देना प्रेम / नदी बह उठेगी
एक और कविता है “तारे बिछड़े हुए प्रेमी है” प्रियतम और चाँद को प्रेम भाव संग चाँद में प्रियतम को देखना साथ में यहां वे कहती हैं की
चांद को याद है तुम्हारी अनुपस्थिति में/ उसी में देखा करती थी तुम्हारा चेहरा / चांद लिख सकता है हमारी प्रेम कहानी / उसकी आंखों के समक्ष टिमटिमाते हैं/ हमारे जीवन के सारे पल /उसे प्रेम है दुनिया के सभी प्रेमियों से/ उसके आंगन में बिखरे हैं असंख्य तारे / यह तारे बिछड़े हुए प्रेमी है / ये प्रेम को तरसे है इन्हें प्रेम भेजो / ये मुस्कुरा उठेंगे एक बार
प्रेम से संबंधित एक और खूबसूरत कविता है “धड़कनों की वीणा पर” :
प्रेमी के चेहरे को देखने भर से/ चमक उठती हैं प्रेमिका की आंखें
प्रेमी के चेहरे का ध्यान लगाकर/ प्रेमिका पढ़ती थी आयतें
प्रेमिका ने ह्रदय पर गाड़ी कील / कील पर टांगी चेहरे की तस्वीर /और तस्वीर के नीचे लिख दिया/ प्रेमी का नाम
प्रेमी अब उसकी धड़कनों में रहता है/ धडकनों की वीणा पर संगीत बजाता है प्रेम ।
जीवन के शाश्वत सत्य मृत्यु के विषय में बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी है कविता “मृत्यु” जो की एक बोध है अंतिम पड़ाव एवं अकाट्य सत्य कहती हैं की :
दूर की सहेली सी लगती है मृत्यु / इससे पहले की सहेली आ जाए मेरे करीब / कसकर लगा ले मुझे गले / और ले चले हाथ पकड़ मुझे गांव के उस छोर पर/ जहां स्त्रियों का जीते जी जाना मना है /मैं जी लेना चाहती हूं । अर्थात स्पष्ट संदेश है कि मरने से पहले क्यू वरना मरने से पहले ही जीवन को अच्छे से जीने का सन्देश है ।
एक और सुन्दर रचना है “पिंजरा” खूबसूरत शुरुआत है कि
मां ने लाड़ से चिरैया क्या कह दिया/ बापू ने सच मान लिया /मुझे चलना सिखाया / उड़ना मैंने सीख लिया /फिर मेरे लिए लाया गया सोने का पिंजरा / वह मुझे पिंजरे में रखता तो मगर उड़ने देता जब उसका मन होता / बोलना उसे भाता नहीं था लिखने की कला का प्रयोग कर उड़ने लगी मैं लिखती रही / और एक दिन मैंने फिर पिंजरा तोड़ना सीख लिया
इस तरह देखा जाये तो प्रत्येक कविता में कुछ खास है एवं पढने पर एक सुख का अहसास सहज ही हो जाता है।
समीक्षात्मक टिप्पणी :-
• प्रस्तुत काव्य संग्रह भाषा शैली के स्तर पर आकृष्ट करता है हालाँकि भरी भरकम विशेषण युक्त शब्दों के प्रयोग की और कवियत्री का विशेष आग्रह लक्षित नहीं होता।
• सभी कवितायेँ पूर्णतः भाव प्रधान है जहाँ मूल में प्रेम है। पाठक को सम्बध्ह करने में अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता क्यूंकि बहुत ज्यादा भारी भरकम या कहें गरिष्ठ साहित्यिक काव्य नहीं है एवं आम पाठक की समझ में आने वाली रचना है। भावों की स्पष्ट एवं सरल अभिव्यक्ति है आसानी से समझने योग्य रचनाये हैं।
• चंद कविताओं के लिए अवश्य ही गंभीर पाठन की दरकार होगी। उन्हें गंभीर विचारपूर्ण तरीके से गहरी सोच के साथ लिखा गया है तथा गर्भित सार तक पहुँचने हेतु पाठक का स्वयं भी गंभीरता से पाठन अनिवार्य है।
• तुकबंदी से परहेज़ कर मात्र भावों की अभिव्यक्ति पर केन्द्रित हो कविताये रची गयी हैं।
* प्रेम भाव से ओतप्रोत सुन्दर पठनीय रचनाएँ हैं जो अपने आप में गाम्भीर्य, शालीनता, एवं रचनात्मकता का सुन्दर एवं व्यवस्थित समायोजन है।
सविनय ,
अतुल्य