है प्रकृति का संवरना तो सबके लिए
लाभदायक है पूरे जगत के लिए
आओ सिंगार मिलकर प्रकृति का करें
बिखरी आभा प्रकृति की तो सबके लिए
चांदनी रात शीतल सी करती रही
ओस की बूंद हरदम चमकती रही
छुप गए हैं अंधेरे उजालों में अब
आश की ये किरण दिल में भरती रही
जो बिखेरी है खुशबू प्रकृति ने यहां
उन हवाओं की खुशबू तो सबके लिए
कर रही है प्रफुल्लित हृदय को प्रकृति
साज मिल कर के हम सब प्रक्रिति का करें
आओ रस प्रेम का इस प्रक्रिति में भरें
इस प्रकृति से ही जीवन सभी का चले
पेड़ पौधे वनस्पति यहां खिल रहे
वादियां जो प्रकृति की समेटे हुए
छेड करके प्रकृति को जो घायल किए
हानिकारक ही होगा सभी के लिए
तन ये पुलकित प्रफुल्लित करें सबका ही
डूब भावो में रसपान इसका करें
इन हवाओं में बिखरी जो खुशबू यहां
उसमें शीतल सी मुस्कान हम सब भरे
चांद सूरज और तारे जो बिखरे यहां
उनका उपकार है इस जगत के लिए
स्वार्थ में डूब जाएं ये मानव भले
प्रेम निश्चल प्रकृति का ही होता यहां
खिल गई फूल बनकरके कलियां यहां
खुशबू से ही महकने लगा ये जहां
पुत्र खुद को प्रकृति को जो मा मान लो
गोद है ये प्रकृति की सभी के लिए
रचनाकार
Author
गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |