जाग मनुज अब हुआ सबेरा
विहग-वृन्द ने तरु-वृंत पर
निकल नीड़ से डाला डेरा
नव-प्रभात की प्रथम किरण में
खग-कुल ने मधु गान है छेड़ा
दिनकर ने स्वर्णिम नयनों से
अखिल विश्व को फिर से हेरा |
कल जो तुमसे छूट गए थे
किसी वजह से रूठ गए थे
उसी प्रिय को फिर से पाने
को कर ले जो उद्यम थोड़ा
कल जो अपने हुए पराये
आज बनेंगे फिर से तेरा |
देखा स्वप्न कभी जो तूने
पाने को जग खूब लूटा है
पाया इस जग में जो तूने
वह नहीं सत्य, पाप पाया है
पर जो कर ले आज प्रायश्चित
धुल जाएगा, पाप जो तेरा|
प्रत्येक मनुष्य के अंतर में
अभिलाषाओं का अमित जाल
पर प्रयत्न करते नहीं
निज-आलसवश जाते टाल
करो दमन जो आलसपन का
लक्ष्य बुलाता तुझको तेरा ||
देखे जाने की संख्या : 422