गुमसुम उदास सी बैठी हो
मैं पास तेरे आ जाऊं क्या
फूलों का गजरा बंन तेरे
बालों को महकाऊ क्या
खिले सुनहरी धूप तेरे
जो छलके मदिरा आंखों से
रसपान वही कर जाऊं क्या
शुष्क ह्रिदय की धरती पर
अब प्रेम का बीज उगांऊ मैं
डूब भाव में मानवता के
हर दिल में बस जाऊं मैं
हृदय भरा अच्छाई से
तब चरित्र का फूल खिला
रखकरके संमभाव सदा ही
अनुशासित कर जाऊं मैं
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