अब बहारें भी मेरे घर में,आती नही है,
अब हवाएं भी तेरा,संदेशा लाती नही है ।।
किस ओर चले गए,तुम छोड़कर मुझको,
ये सदायें भी वहां पे,पहुंच पाती नही है ।।
ऐसे तो नही थे तुम,फिर कैसे बदल गए,
क्या तुमको ये रातें,अब तड़पाती नही है ।।
जब दर्पण में खुद को,तुम निहारते होगे,
क्या मेरी तस्वीर उसमे,नजर आती नही है ।।
जमाने में तुझसे भी कई,हसीं और भी है,
तेरी सीरत किसी में,मुझे मिल पाती नही है ।।
मेरी आंखों में तेरी तस्वीर,बसी है कुछ ऐसे,
और कोई सूरत मुझको,पसंद आती नही है ।।
तेरे बिन सब त्यौहार,अब तो सूने सूने है,
दीवाली में अंधेरा है,होली भी भाती नही है।।
रब जोड़ता है,ह्रदय से ह्रदय का रिश्ता,
ऐसे ही मेरे मन को,कोई लुभाती नही है ।।
मेरे रब किसी को कभी,प्रेम न हो किसी से,
विरह की बेदना अब,और सही जाती नही है ।।
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